एम्स ऋषिकेश ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल की है। संस्थान के रेडियोलॉजी विभाग ने पहली बार ‘सुपरफिशियल फीमोरल आर्टरी (एसएफए) एथेरेक्टोमी’ प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह तकनीक पैर की सबसे बड़ी धमनी में ब्लॉकेज का इलाज बिना बायपास सर्जरी और स्टंट के करती है।
पैरों में रक्त का प्रवाह कम होने पर अब फीमोरल धमनी (जांघ की सबसे बड़ी रक्त वाहिका) में ब्लाॅकेज की समस्या का एथेरेक्टाॅमी तकनीक से इलाज किया जा सकेगा। एम्स ऋषिकेश के रेडियोलाॅजी विभाग ने हाल ही में इस प्रक्रिया को सफलता पूर्वक संपन्न कर एक नई उपलब्धि हासिल की है। मेडिकल साईंस की यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें बाईपास सर्जरी करने से बचा जा सकता है और साथ ही रक्त वाहिका में स्टंट डालने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। इस प्रक्रिया से इलाज करने वाला एम्स ऋषिकेश देश के नव स्थापित एम्स संस्थानों में पहला एम्स है।
यह प्रक्रिया हाल ही में एक 68 वर्षीय मरीज पर की गई, जिसे ब्लॉकेज के चलते चलने में परेशानी हो रही थी और उसके पैर का रंग भी काला पड़ गया था। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. उदित चौहान ने बताया कि यह एक न्यूनतम इनवेसिव तकनीक है जो एथेरोस्क्लेरोटिक प्लाक को हटाकर रक्त प्रवाह को बेहतर बनाती है।
’’हमारे चिकित्सकों द्वारा इस प्रक्रिया का सफल निष्पादन करना, उन्नत चिकित्सा तकनीकों को अपनाने और रोगियों को अत्याधुनिक उपचार प्रदान करने के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। एसएफए एथेरेक्टॉमी की शुरुआत करके एम्स ऋषिकेश ने, न केवल अपनी इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी क्षमताओं को बढ़ाया है अपितु अन्य नए एम्स संस्थानों के सम्मुख एक मिसाल भी कायम की है। चिकित्सा देखभाल में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से रोगी परिणामों में सुधार के लिए यह उपलब्धि एम्स ऋषिकेश की प्रतिबद्धता साबित करती है।’’
——- प्रो0 मीनू सिंह, कार्यकारी निदेशक, एम्स ऋषिकेश।
Reported By: Arun Sharma