हरिद्वार में प्रत्येक कुम्भ और अर्ध कुम्भ पर उत्तर प्रदेश के समय से ही करोड़ों का फंड इस कुम्भ नगरी की सूरत बदलने के लिए मिलता आ रहा हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी इस धनराशि में इजाफा ही हुआ है। पिछले दिनों जब डॉ० रमेश पोखरियाल मुख्यमन्त्री थे तब इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन ने 34 करोड़ रूपया हरिद्वार में हरकी पैड़ी के सौंदर्यीकरण और विकास के लिए दिये थे। जिसमें 8 करोड़ रूपये रोडी बेलवाला में मखमली घास लगाने पर दर्शाया गया। परन्तु रोड़ी बेलवाला में वह 8 करोड़ की घास कौन चर गया ? कुछ पता नहीं वहाँ जिला प्रशासन व हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण ने अवैध पार्किंग बनाने के लिए करोड़ों की टॉईले लगा दी परन्तु इस पार्किंग की भूमि मेला लैण्ड होने के कारण माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने इस पर स्थगन आदेश (स्टे आर्डर) जारी कर इस अधूरे निर्माण को रोक दिया।
एक सवाल बडा अहम है कि जब उत्तराखंड के हुक्मरानों को पता था कि यह कुम्भ मेला आरक्षित भूमि है और इसका स्वामित्व उत्तर प्रदेश सरकार का है और इस पर जस्टिस राधाकृष्ण अग्रवाल आयोग अपनी रिपोर्ट में इस भूमि पर कोई निर्माण न करने और इसे खाली(Rotation Area )रखने के आदेश दे चुका है तो सूबे के जिन अफसरों ने मनमानी कर एक बड़ा खेल खेलते हुए यहां पार्किंग का निर्माण किसके आदेश पर और क्यों शुरू करवाया!
उत्तराखंड जैसे गरीब राज्य का करोड़ों रुपए स्वाहा कर माननीय न्यायालय के स्थगन आदेश के कारण इसे धूल फांकाने के लिए छोड़ दिया है, अब यहां न लगी टाइलें बचेंगी न करवाया गया निर्माण।
इस राज्य का दुर्भाग्य है कि राज्य बनने के बाद पूर्व मुख्यमन्त्री स्व. श्री नारायण दत्त तिवारी के सिवा कांग्रेस और भाजपा के जितने भी मुख्यमन्त्री बने सभी ने उत्तराखंड और उत्तराखंड के गरीब व् सीधे-साधे लोगों के उत्थान पर नहीं केवल सत्ता की मलाई चाटने पर ही ध्यान दिया।
मैं ना तो किसी राजनैतिक दल का सदस्य हूं, ना मेरी आज की लूट खसोट की राजनीति में कोई रुचि हैं। मैंने स्व० श्री एन०डी० तिवारी के नाम का उल्लेख इसलिए किया कि उन्होंने तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष सरदार मोंटेक सिंह से पैसे रिलीज करवा कर हरिद्वार, भगवानपुर, रुद्रपुर और सेलाकुई (देहरादून) में सिडकुल की स्थापना करवाई थी, ताकि पहाड़ के बेरोजगारों को यहां रोजगार मिल सके।
परन्तु आज सिडकुल का भी बुरा हाल है। 60 – 65 प्रतिशत अन्य राज्यों के लोग यहां काम कर रहे हैं और पहाड़ का युवा सड़कों पर धक्के खा रहा है, या पलायन कर अन्य राज्यों में नौकरी कर रहा हैं। आखिर उत्तराखंड बनने का फायदा भ्रष्ट अफसरशाहों के सिवा किसी को नहीं हुआ । सिडकुल में श्रम विभाग की नाक के नीचे मामूली से वेतन पर 12 – 12 घंटे काम लिया जा रहा हैं। मुख्यमन्त्री जी तो राजा है, वह नौकरशाहों के हाथ की कठपुतली है फिर वह दिल्ली दरबार में भी खासी पैठ रखते हैं।
बद्रीनाथ -केदारनाथ में विकास के नाम पर फुटपाथ पर बैठकर छोटा-मोटा धंधा कर परिवार का भरण पोषण करने वालों को उजाड़ दिया गया है वह भी अब दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।आखिरी ई०डी० ,सी०बी०आई० और कई सरकारी एजेंसियां यहां के कुछ भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों और अफसरों की छानबीन क्यों नहीं करती? यह बडा अहम प्रश्न हैं ।
मैंने अपने युग के महान कवि कालिदास की एक पुस्तक पढ़ी थी ,माँ सरस्वती ने उनका अहम कैसे तोड़ा थोडा संक्षेप में लिखता हूँ। प्यासे कालिदास एक झोपड़ी में आगे पहुंचे और पानी पिलाने का आग्रह किया झोपड़ी में से निकली स्त्री ने पानी पिलाने से पूर्व उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं एक पथिक हूं। सरस्वती माँ जो स्त्री के रूप में थी उन्होंने तुम पथिक नहीं हो पथिक केवल दो है सूर्य और चंद्रमा जो कभी रुकते नहीं। इस पर कालिदास जी ने कहा मेहमान हुँ। इस पर उस स्त्री ने कहा कि मेहमान कैसे हो सकते हो, संसार में मेहमान दो ही है।पहला धन और दूसरा यौवन इन्हें जाने से में समय नहीं लगता। सच बताओ तुम कौन हो थके हारे कालिदास ने कहा कि सहनशील हूंँ इस पर भी माँ सरस्वती रूपी उस स्त्री ने कहा गलत। पहली सहनशील है धरती जो पापी पुण्यआत्मा सभी का बोझ सहती है। और उसकी छाती चीर कर बीज बो देने पर अनाज के भंडार देती है दूसरे फलदार वृक्ष जिन्हें पत्थर मारो तब भी वह मीठे फल देते हैं।
लगभग मूर्छित हो चुके कालिदास ने कहा कि मैं मुर्ख हूँ। तब माँ सरस्वती रूपी उस स्त्री ने कहा कि तुम मूर्ख नहीं हो, मूर्ख दो ही है पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है और दूसरे उसके दरबारी भाट, पंडित व् चारण जो राजा को प्रश्न करने के लिए गलत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने में लगे रहते हैं। यह सुनकर माँ सरस्वती के चरणों पर गिर पड़े ।
मेरे ख्याल से मेरे इस शास्त्रोक्त कथन का मकसद आप समझ ही गए होंगे।
कहावत है कि किस्मत बलवान तो गधा भी पहलवान खैर देश की सभी राजनैतिक पार्टियों मैं जो खेल चल रहा है, वह भविष्य के लिए बहुत खतरनाक है। देश, देश के बेरोजगार युवा घोर भ्रष्टाचार, राजनीति में बढ़ता परिवारवाद और लाचार न्याय प्रणाली से देश का प्रत्येक व्यक्ति हताश और निराशा है राजनीति अब लगभग व्यवसाय बन गयी हैं। अपराधियों के हौसले बुलंद है। क्योंकि कहावत है कि सैय्या भये कोतवाल तो डर काहे का।