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वरुण रावत: स्कूटर की रफ्तार में बस्ती गढ़वाली माटी की महक

Varun Rawat

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रैपिडो स्कूटर की सवारी केवल सड़कों पर दौड़ती नहीं, इसके पीछे छिपी होती है एक ऐसी प्रतिभा, जो दिलों को छू लेती है। बैजरो पौड़ी गढ़वाल के वरुण रावत, एक ऐसा नाम, जो न केवल स्कूटर की रफ्तार में, बल्कि अपनी माटी की महक और मातृभाषा की मिठास में बस्ता है। गढ़वाली गीतों के प्रेमी वरुण, अपनी भाषा को न सिर्फ बोलते हैं, बल्कि उसे जीते हैं।

देहरादून की गलियों से लेकर हर उस नगर तक, जहाँ उनकी स्कूटर की आवाज़ गूंजती है, वे एक संदेश छोड़ जाते हैं—अपनी भाषा को हर पल, हर श्वास में जिओ। खासकर तब, जब सामने वाला भी उसी माटी की सुगंध लिए हो, तब तो यह बोली और भी गहरे उतरती है।

जब वरुण अपनी स्कूटर से उतरे और मेरे सामने ठहरे, तो उनके होंठों पर नरेंद्र सिंह नेगी की पंक्तियाँ थीं। वे शब्द न थे, मानो पहाड़ों की सौंधी हवा थी, जो मौलिक रंग में रची-बसी थी। हर शब्द में गहराई, हर पंक्ति में जड़ों का गर्व। उनकी आवाज़ में वो ठहराव था, जो दिल को सुकून देता है, और वो जोश, जो अपनी संस्कृति को जीवंत रखने की प्रेरणा देता है।

 

Reported By: Arun Sharma

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