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अब सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कार्यरत पत्रकारों को ‘झोलाछाप’ कहकर खारिज नहीं किया जा सकेगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि डिजिटल व सोशल मीडिया पत्रकार भी पत्रकार की श्रेणी में आते हैं और उनके लिए भी आचार संहिता व शिकायत निवारण तंत्र लागू है। यह स्थिति तब सामने आई जब उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जोशी ने पीएमओ के शिकायत पोर्टल पर डिजिटल पत्रकारों को पारंपरिक पत्रकारों के समान मान्यता व सुविधाएं दिए जाने की मांग की।
मंत्रालय ने स्वीकार किया कि Information Technology Rules, 2021 और Labour Codes 2020 के तहत डिजिटल पत्रकार भी शामिल हैं। साथ ही यह भी माना कि वर्तमान में CGHS, रेल रियायत, विज्ञापन व कल्याण योजनाओं से वे वंचित हैं, और इसमें बदलाव की आवश्यकता है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को सरकारी विज्ञापन देने की दिशा में कर्नाटक जैसे राज्यों ने कदम बढ़ाया है, जिससे संकेत मिलता है कि नीति में परिवर्तन की लहर शुरू हो चुकी है। विशेषज्ञों ने भी समान अधिकार और सुरक्षा की मांग को जायज़ ठहराया है।
यह पहल डिजिटल पत्रकारिता को मुख्यधारा में लाने और मीडिया की आज़ादी को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
इस प्रकार, पीयूष जोशी की शिकायतों के माध्यम से उठाया गया यह मुद्दा न केवल डिजिटल पत्रकारों की सामाजिक और कानूनी मान्यता से जुड़ा है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है और नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता अब अपरिहार्य हो चुकी है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें डिजिटल पत्रकारों को औपचारिक मान्यता, कल्याण योजनाओं और विज्ञापन नीति में समुचित स्थान देती हैं, तो यह भारत में मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।
Reported By: Arun Sharma