उत्तराखंड की लोक संस्कृति को संजोने और उसे वैश्विक मंच तक पहुँचाने में रेशमा शाह का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पिछले 25 वर्षों से लोक संगीत के क्षेत्र में सक्रिय रेशमा शाह ने उत्तराखंडी गीतों में पारंपरिक धुनों, रीतियों, प्रेम, वीरता और प्रकृति की सुंदरता को सम्मिलित किया है। उनके गाए लोकगीतों को हर पीढ़ी में समान रूप से सराहा जाता है।
हाल ही में उन्हें कोलंबिया पेसिफिक वर्चुअल यूनिवर्सिटी, मथुरा द्वारा लोक संस्कृति के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई, जो उत्तराखंड के सांस्कृतिक प्रेमियों के लिए गर्व की बात है। रेशमा शाह ने लोक संगीत में आधुनिकता का संगम किया, जिससे युवा पीढ़ी भी इस संगीत से जुड़ी। उनके प्रमुख गीतों में “हे बौज्यू हे भौजी”, “घुघूती न बासा”, “बेदू पाको बारोमासा” और “लाली ओ लाली” शामिल हैं।
रेशमा शाह की यह उपलब्धि उत्तराखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति और संगीत परंपरा के संरक्षण एवं संवर्धन में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनकी मेहनत और समर्पण ने उत्तराखंडी लोकसंगीत को जीवंत बनाए रखा है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया है। उनका यह सम्मान हर उत्तराखंडी के लिए गर्व का क्षण है और यह दर्शाता है कि अगर जुनून और लगन हो तो कोई भी अपनी संस्कृति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचा सकता है।
Reported By: Shiv Narayan