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विश्व नेत्रदान दिवस के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में आयोजित मासिक मानस कथा के मंच से पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जनमानस से आह्वान किया कि जीवन में रक्तदान करें और मृत्यु के पश्चात नेत्रदान कर किसी की अंधेरी दुनिया को रोशन करें। उन्होंने कहा कि नेत्रदान मानव सेवा का सर्वोच्च रूप है जो केवल आंखें नहीं देता, बल्कि आशा, आत्मनिर्भरता और जीवनदृष्टि भी प्रदान करता है।
स्वामी जी ने बताया कि भारत में लगभग 1.2 करोड़ लोग दृष्टिबाधित हैं और 20 लाख से अधिक कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो नेत्र प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में हैं। लेकिन प्रति वर्ष नेत्रदान की संख्या बहुत कम है और इससे आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि यदि समाज में जागरूकता बढ़ाई जाए और अधिक लोग नेत्रदान का संकल्प लें तो यह समस्या आसानी से हल हो सकती है।
स्वामी चिदानन्द ने नेत्रदान से जुड़े मिथकों को तोड़ते हुए इसे एक वैज्ञानिक, सम्मानजनक और पावन कार्य बताया। उन्होंने कहा कि यह शरीर का त्याग नहीं, बल्कि आत्मा के प्रकाश का प्रसार है, जो अंधकार मिटाकर सच्चा धर्म निभाता है। भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में अंगदान को परम पुण्य माना गया है, जैसे महर्षि दधिचि ने अपनी हड्डियां दान की थीं।
स्वामी जी ने कहा कि नेत्रदान के लिए इच्छुक व्यक्ति को अधिकृत आई बैंक या स्वास्थ्य संस्था में पंजीकरण कराना चाहिए और अपने परिवार को इस संकल्प की जानकारी अवश्य देनी चाहिए ताकि मृत्यु के बाद यह पुण्य कार्य संभव हो सके। मृत्यु के छह घंटे के भीतर नेत्रों का सुरक्षित संग्रह संभव है, जिससे दो दृष्टिहीन लोगों को जीवनदृष्टि मिल सकती है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अन्त में कहा कि दृष्टि का दान केवल नेत्रदान नहीं, बल्कि भविष्य और आशा का दान है। इस विश्व नेत्रदान दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि हम जाते-जाते किसी की दुनिया रोशन करेंगे, जिससे हमारा यह जीवन सच्चे अर्थों में सफल और पुण्यात्मा होगा।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन में हो रही गंगा आरती, जागरूकता कार्यशाला और वेदांत योग प्रशिक्षण के प्रतिभागियों ने भी कथा का आनंद लिया।
Reported By: Arun Sharma