हरिद्वार की पवित्र तीर्थनगरी अब श्रद्धा का नहीं, अधिकारियों और ठेकेदारों के गठजोड़ से चल रहे भ्रष्टाचार का अखाड़ा बनती जा रही है। पंतदीप पार्किंग घोटाले में जहां पहले एक अधिकारी सस्पेंड हुआ था चार पर जांच अभी भी जारी है , अब उसके बाद की सूची भी तैयार है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि इस घोटाले के भस्मासुर अब ‘पंतदीप पार्किंग टू घोटाले’ की नई पटकथा रचने में जुट चुके हैं, जिसमें श्रद्धालुओं की जेब पर सीधा हमला करने की तैयारी की जा रही है।
2019 में हुए 3 साल के एग्रीमेंट (₹8.15 करोड़) के बाद ठेकेदार ने कोरोना और कुंभ का बहाना बनाकर 629 दिन की एक्स्ट्रा अवधि हासिल कर ली — वह भी दो बार में! जब इस गड़बड़ी को अशोक चौधरी ने अदालत में चुनौती दी, तो हाईकोर्ट ने सीधे इसे रद्द कर दिया।
केंद्र और राज्य सरकार की मुद्रास्फीति नीति के अनुसार रेट अधिकतम 6% तक ही बढ़ाए जा सकते हैं, लेकिन पंतदीप पार्किंग में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए रेट सीधे 50% तक बढ़ा दिए गए।
2024 में दोबारा ठेका हुआ, और फिर वही शर्त रखी गई कि “कमेटी रेट घटा-बढ़ा सकती है”। मगर यह कमेटी पूरी तरह अधिकारियों की कठपुतली बन गई और बिना कारण, बिना जनहित में सोचते हुए 50% रेट बढ़ा दिए गए।
पत्रकार ने देहरादून में बैठे सिंचाई विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सुभाष चंद्र पांडे से कई बार फोन पर संपर्क किया, लेकिन घंटी जाती रही, जवाब नहीं आया।
अब जरूरी है न्याय, नहीं तो तीर्थ लुटता रहेगा! जो तीर्थनगरी श्रद्धा और सेवा के लिए विश्वविख्यात है, वहाँ यदि पार्किंग जैसे बुनियादी सुविधा में भी लूट का सिलसिला चल रहा है, तो यह पवित्रता पर कालिख है।
“सरकार को चाहिए कि” — इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच कराए। दोषी अधिकारियों को जेल भेजा जाए। पार्किंग दरों को जनहित में पुनः निर्धारित किया जाए। पंतदीप पार्किंग टू घोटाले का मतलब है – भक्तों की आस्था पर दूसरा हमला। यह तीर्थ नगरी है, लूट की मंडी नहीं।
Reported by: Ramesh khanna