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पिथौरागढ़:
उत्तराखंड बचाओ संघर्ष समिति ने अल्मोड़ा के जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडे द्वारा खनिज न्यास ट्रस्ट का उपयोग करते हुए सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति के अभिनव प्रयोग की सराहना की है। समिति ने इसे शिक्षा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए जिलाधिकारी को शीघ्र अल्मोड़ा जाकर सम्मानित करने की घोषणा की है।
समिति की मांग:
समिति ने इस प्रयोग को उत्तराखंड के अन्य 12 जिलों में लागू करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत से एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) जारी करने की मांग की है। समिति ने इसे प्रदेश के विद्यार्थियों के भविष्य के लिए एक क्रांतिकारी कदम बताया है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और शिक्षकों की कमी दूर होगी।
जगत मर्तोलिया का बयान:
समिति के राज्य संयोजक और निवृत्तमान जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने कहा कि खनिज न्यास से अधिकांश जिलों में केवल खड़ंजा, बटिया और सीसी निर्माण जैसे कार्य होते रहे हैं। लेकिन डीएम आलोक पांडे ने इसका उपयोग शिक्षा में करके प्रदेश के लिए एक मिसाल कायम की है।
उन्होंने बताया कि खनिज न्यास ट्रस्ट के माध्यम से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के तहत शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति की योजना बनाई गई है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी और पलायन पर भी रोक लगेगी।
अल्मोड़ा बना प्रेरणास्रोत:
मर्तोलिया ने कहा कि यह अभिनव प्रयोग न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत में अपनी तरह का पहला प्रयास है। उन्होंने अल्मोड़ा की जनता और जनप्रतिनिधियों से इस नवाचार की रक्षा और इसे सफल बनाने की अपील की।
सम्मान और सुझाव:
समिति ने जिलाधिकारी को सम्मानित करने के साथ-साथ एक गैर-राजनीतिक मंच के गठन की बात कही है, जो इस तरह के नवाचारों को प्रोत्साहित और संरक्षित करेगा। उन्होंने प्रदेश सरकार से अपील की कि इस प्रयास को राज्यभर में लागू किया जाए ताकि अधिक से अधिक बच्चों को इसका लाभ मिल सके।
समिति का आरोप:
समिति ने यह भी कहा कि कई जनप्रतिनिधि केवल खड़ंजा निर्माण जैसी परंपरागत परियोजनाओं पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे राज्य का दीर्घकालिक विकास बाधित होता है। उन्होंने अल्मोड़ा की इस पहल को अन्य जनपदों में दोहराने की आवश्यकता पर जोर दिया।
निष्कर्ष:
डीएम आलोक कुमार पांडे का यह प्रयास न केवल शिक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि प्रदेश में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने का भी उदाहरण है। इस पहल को सम्मानित कर अन्य जिलों में अपनाए जाने की संभावना से उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है।
-Crime Patrol