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ब्यूरो: भारत सरकार द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति ने ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है। समिति ने सभी राज्यों, including उत्तराखंड, से इस व्यवस्था के संभावित लाभ और हानियों पर छह महीने के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। समिति का कहना है कि यह मुद्दा देशहित से जुड़ा हुआ है और सभी सुझावों को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाएगा।
समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने बताया कि अभी तक महाराष्ट्र और उत्तराखंड से फीडबैक लिया गया है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे, लेकिन बाद में यह व्यवस्था बिगड़ गई। अब इसे फिर से स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
आर्थिक लाभ की संभावना पर समिति ने बताया कि यदि यह व्यवस्था लागू होती है तो देश को पांच लाख करोड़ रुपये (1.6% GDP) तक का लाभ हो सकता है। साथ ही चुनावों के दौरान श्रमिकों और उद्योगों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा।
समिति ने सुझाव दिया है कि अप्रैल-मई का समय एक साथ चुनावों के लिए उपयुक्त रहेगा। हालांकि, समिति ने यह स्पष्ट किया है कि कोई तय समयसीमा नहीं है और जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लिया जाएगा।
तकनीकी और संवैधानिक चुनौतियों पर भी चर्चा हुई, और समिति ने भरोसा दिलाया है कि हर तकनीकी समस्या का समाधान निकाला जाएगा। यदि किसी कारणवश सरकारें कार्यकाल पूरा होने से पहले गिरती हैं, तो सिर्फ शेष अवधि के लिए चुनाव होंगे, ताकि सिंगल सर्कल बना रहे।
41 सदस्यीय इस समिति में सभी दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं, और विचार-विमर्श में विभिन्न राज्यों, संगठनों व विशेषज्ञों की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।