वैशाख शुक्ल सप्तमी वह दिन है जब सृष्टि निर्माण के समय विश्व की इकलौती मातृ नदी भगवती गंगा का जन्म विष्णुलोक में हुआ था । त्रेता युग में भगवान राम के पुरखे राजा सगर के शापित पुत्रों की राख बहाने के लिए भगीरथ गंगा को शिव की जटाओं के रास्ते धरती पर लाए थे । लाखों वर्ष बीत गए 2525 किलोमीटर लंबी गंगा मैया गंगोत्री से गंगा सागर तक आज भी बह रही हैं ।
गंगा कब और कैसे जन्मीं यह लम्बी गाथा है । गंगा अवतरण और गंगा जन्मोत्सव दो अलग विषय हैं ।
आख्यानों के अनुसार अनन्त काल पूर्व महाशून्य में क्षीरसागर पर लेटे भगवान विष्णु महालक्ष्मी संग प्रकट हुए । उनकी नाभि से कमल पर बैठे ब्रह्मा प्रकटे और अनंत से भस्मीभूत भगवान शिव ने आकार लिया । ये तीनों देव नित्य हैं ,अजन्मा हैं , अनादि हैं और गर्भ से नहीं जन्में । मोक्षप्रदायनी मां गंगा का जन्म भी विष्णुलोक में हुआ था । अक्षय तृतीया के दिन विष्णु धरा धाम पर अवतरित हुए और सप्तमी के दिन स्वयंभू महालक्ष्मी ने उनके चरण धोए । यह चरणोदक ब्रह्मा ने अपने कमंडल में भर लिया और उसे ब्रह्मलोक में बहने के लिए छोड़ दिया ।
ब्रह्मा ने विष्णु चरणोदक को गंगा नाम दिया और गंगा ब्रह्मलोक से स्वर्गलोक के बीच बहने लगी । उसी गंगा का आज वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन जन्मोत्सव है । गंगोत्री से गंगासागर तक संपूर्ण गांगेय क्षेत्र में गंगा जन्मोत्सव श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है । जगत का कल्याण करने के लिए श्रीचरणों से निश्रित गंगा ब्रह्मलोक से स्वर्ग तक अपनी सुगंध के साथ बहने लगी ।
कालांतर में इसी गंगा को धरती वासियों के उद्धार के लिए अयोध्या के राजा भगीरथ शिव की जटाओं के माध्यम से धरती पर लाए । इक्ष्वाकु वंश की चार पीढ़ियां गंगा को धरती पर उतारने में लगी । अंततः राजा भगीरथ इस कार्य में सफल हुए । कपिल मुनि के आश्रम में पड़ी सगर पुत्रों की राख गंगा में बहाकर राजा भगीरथ का गंगा महायज्ञ पूर्ण हुआ । आज प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं और हजारों यात्री इसके तट पर दैविक और पैतृक कर्मकांड करते हैं । कृतज्ञ मानवजाति विष्णुलोक में विष्णु के चरणोदक के रूप में जन्मी गंगा की अर्चना करेगी । गंगा तटों पर तीर्थ पुरोहित मां गंगा की आरती उतारेंगे ।
गंगा को सहस्र नामों से पुकारा जाता है । गंगा को विष्णुपदि कहा जाता है । चूंकि ब्रह्मा ने विष्णु चरणोदक को अपने कमंडल में भर लिया था अतः इसे ब्रह्म कमंडली भी कहा जाता है । हिमालय में शिव के जटाजूट से निकल गंगा आगे बढ़ीं तो तपस्या कर रहे ऋषि जन्हू ने उसे पी लिया । भगीरथ की प्रार्थना पर ऋषि ने गंगा को अपनी जंघा से छोड़ दिया और गंगा जान्हवी कहलाई । गंगा ने मार्ग में ऋषि दत्तात्रेय की कुशाएं बहा दी । उन्हें कुशोत्री भी कहा गया है ।
एक अन्य पौराणिक कथानक के अनुसार कभी अनादि राधा और अनादि कृष्ण ने चंद्रमा की चांदनी पूर्णिमा में ब्रह्मलोक में महारास किया था । प्रेम में दोनों इतने लीन हो गए कि जलरूप हो गए और बहने लगे । वैशाख शुक्ल सप्तमी पर जन्मी मां गंगा का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाएगा । हर की पैड़ी सहित कईं स्थानों । आज जन्मी मां गंगा सवा महीने बाद ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन धरती पर आईं । गंगा जन्मोत्सव पर समस्त देशवासियों को शुभकामनाएं ।
Reported By: Ramesh Khanna