देहरादून— दून लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर में “जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार” पर एक विचारोत्तेजक पैनल चर्चा आयोजित की गई। यह कार्यक्रम ‘उत्तराखंड आइडिया एक्सचेंज ऑन क्लाइमेट एंड कॉन्स्टिट्यूशन’ के तहत आयोजित हुआ, जिसमें एसडीसी फाउंडेशन ने सहयोग किया। विशेषज्ञों ने एमके रंजीत सिंह बनाम भारत संघ (2024) के सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय और जलवायु परिवर्तन से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा पर विचार-विमर्श किया।
इस चर्चा की शुरुआत दून लाइब्रेरी के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी के स्वागत सम्बोधन से हुई। पैनल चर्चा का संचालन गौतम कुमार, सहायक प्रोफेसर, यूपीईएस स्कूल ऑफ लॉ और एसडीसी फाउंडेशन के फेलो ने किया। गौतम ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का संदर्भ लेते हुए वर्तमान फैसले की कानूनी और सामाजिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कानूनी सलाहकार अमन रब ने इस फैसले के कानूनी पहलुओं पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत पहले से मौजूद अधिकारों को ही नए संदर्भ में लागू किया है। उन्होंने इसे भारत में जलवायु न्याय के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम बताया, लेकिन साथ ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई को लागू करने में आ रही चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
वरिष्ठ पत्रकार वर्षा सिंह ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया, खासकर स्कूली बच्चों के संदर्भ में। उन्होंने जलवायु संकट के लैंगिक प्रभावों पर भी जोर दिया, यह बताते हुए कि महिलाएं जलवायु परिवर्तन से विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। उन्होंने मीडिया की भूमिका पर भी चर्चा की, यह बताते हुए कि कैसे मीडिया पर्यावरणीय अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद कर सकता है।
डॉ. हर्ष डोभाल, विजिटिंग प्रोफेसर, दून विश्वविद्यालय, ने जलवायु परिवर्तन के सामुदायिक प्रभावों पर अपने फील्ड रिसर्च के आधार पर बताया कि उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में हीटवेव के चलते अब कूलिंग सिस्टम की आवश्यकता भोजन और पानी जैसी आवश्यकताओं के बराबर हो गई है। उन्होंने जलवायु शमन और अनुकूलन नीतियों की अनिवार्यता पर जोर दिया।
यूपीईएस के सहायक प्रोफेसर आदित्य रावत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करते हुए इसे मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर झुकाव बताया। उन्होंने इसे अदालत के पूर्ववर्ती इकोसेंट्रिक निर्णयों से हटकर देखा, जिसमें पर्यावरण, वन्यजीव और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की उपेक्षा की गई है। आदित्य ने कहा कि जलवायु संकट के कारण आदिवासी समुदायों की पहचान और उनके पारंपरिक जीवन पर गहरा असर पड़ा है।
पैनल चर्चा के दौरान उपस्थित दर्शकों ने पैनलिस्टों के साथ खुलकर संवाद किया। चर्चा के दौरान यह सवाल उठा कि पर्यटन और सरकार की नीतियों के कारण जलवायु असुरक्षा कैसे बढ़ रही है और सिविल सोसाइटी के सहयोग से इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
अंत में एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने चर्चा के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया और धन्यवाद ज्ञापन दिया। उन्होंने पैनलिस्टों के योगदान की सराहना की और भविष्य में उत्तराखंड के संवैधानिक अधिकारों पर अधिक विमर्श की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से एसपी सुबुधी (निदेशक, राज्य पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय), प्रोफेसर एचसी पुरोहित, डॉ. एसपी सती, डॉ. राजेंद्र कठैत, वैशाली सिंह, जया सिंह, ब्रिगेडियर खाती (सेवानिवृत्त), और देहरादून के विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र, सिविल सोसाइटी के सदस्य, वकील, और प्रोफेसर शामिल थे।