Home » “देवी सुरेश्वरी भगवती गँगा त्रिभुवनतारिणी तरलान्तरगँगे शंगकारा-मौली विहारिणी विमले मम मातिर-अस्त्व तव पद् कमले”

“देवी सुरेश्वरी भगवती गँगा त्रिभुवनतारिणी तरलान्तरगँगे शंगकारा-मौली विहारिणी विमले मम मातिर-अस्त्व तव पद् कमले”

Goddess

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राजा भगीरथ के कई वर्षों के कठोर तप कर ॐ नमः गँगाय विश्वरूपिणी नारायणी नमो नमः के जाप से माँ गँगा को त्रिपथगा के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वह तीनों लोकों स्वर्ग लोक, पाताल लोक तथा पृथ्वी लोक पर बहती हैं। भगीरथ द्वारा तपोबल से गँगा जी को धरती पर लाने के कारण उन्हें भागीरथी भी कहा जाता हैं।

परन्तु अफसोस की आज माँ भागीरथी गँगा जो देश-विदेश में बसे करोड़ों हिन्दू जनमानस की आस्था व श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है वह करोड़ों की योजनाएं लागू करने पर भी प्रदूषित व गन्दगी से भरी पड़ी है। उल्लेखनीय है की गँगा नदी को तत्काल प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने “राष्ट्रीय नदी” घोषित कर इसे “राष्ट्रीय नदी” का दर्जा प्रदान किया गया। 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आए और उन्होंने “निर्मल गँगा”, “स्वच्छ गँगा” के नाम पर नमामि गँगे, स्पर्श गँगा जैसी संस्थाएं बनाकर गँगा की निर्मलता, स्वच्छता और अविरलता पर कई हजार करोड रुपए स्वाहा कर दिए। न गँगा स्वच्छ हुई न अविरल! अविरलता का मुद्दा तो दम ही तोड़ चुका है। क्योंकि माँ भागीरथी की अविरलता तो टिहरी डैम के बाद ही दम तोड़ गई, अब तो टिहरी डैम की झील का पानी आ रहा है। अलकनंदा पर भी कई डैम बने हैं, यहाँ से भी अविरलता नाम की चीज नहीं, मात्र झीलों का रुका हुआ पानी आ रहा है। माँ गँगा का पीछे से ही व्यवसायिकरण कर पवित्रता, अविरलता खत्म कर झीलों का पानी गँगा में छोड़ा जा रहा हैं ।

उत्तराखंड में चूँकी सिंचाई विभाग और टिहरी झील से आ रही गँगा पर उत्तर प्रदेश का स्वामित्व है अतः नमामि गँगे, स्पर्श गँगा उत्तराखण्ड सरकार सभी उत्तर प्रदेश की उस दादागिरी पर चुप है जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार व् उत्तराखण्ड सरकार में समझौता हुवा हैं कि गँगा बंदी के दौरान भागीरथी बिंदु से जल का प्रभाव नहीं रोका जाएगा, ताकि हरकी पैड़ी पर श्रद्धालु स्नान, आचमन और जल भरकर अपने-अपने गंतव्य को ले जा सके। हैरत की बात तो यह है की गँगा के रखरखाव का दायित्व सम्भालने और गँगा जी के चढावे को सम्भालने वाली संस्था “श्री गँगा” सभा भी उत्तर प्रदेश की धींगा मुश्ती पर खामोश है क्यों? यह एक यक्ष प्रश्न हैं ।

कुछ शरारती लोग अब नील धारा को हरकी पैड़ी ब्रह्मकुण्ड बताकर भ्रम पैदा कर रहे हैं, परन्तु इस पर भी हरिद्वार के धर्माचार्य, संत, महंत, महामण्डलेश्वर, गँगा की रख-रखाव व सफाई करने वाले भी मौनव्रत रखे हुए हैं। उत्तराखण्ड के सिंचाई मंत्री जो स्वयं बहुत बड़े धर्माचार्य है वह भी कुम्भकर्णी नींद में सोए हुए हैं। जिस पतित पावनी माँ गँगा भागीरथी के आशीर्वाद से हरिद्वार के व्यापारी, साधु, संत, महामण्डलेश्वर, लंबे-लंबे तिलकधारी, श्री गँगा सभा सहित दर्जनों धार्मिक संस्थाएं अपना अस्तित्व बरकरार रखे हुए हैं। क्या उन्हें माँ गँगा के विकराल रूप का भय नहीं है।
मेरा माननीय धर्माचार्य राजनैतिक नेताओं और माँ गँगा के दम पर चल रही संस्थाओं से गुजारिश है कि समय की गति बड़ी बलवान है। समय से डरो समय ने राज सिंहासन पर विराजमान राजा हरिश्चंद्र को भी एक बार शमशान भूमी का डोम बना दिया था, दुनिया को लूटने वाला सिकन्दर भी खाली हाथ पसारकर गया था। जिस पतित पावनी माँ गँगा से हम यह अपेक्षा रखते हैं की मृत्यु के बाद वह हमारे अस्थि, अवशेषों को अपने चरणों में रखकर मोक्ष प्रदान करेगी, आज वही माँ गँगा आज आपसे अपने अस्तित्व की पवित्रता, अवरलता, सुचिता और स्वच्छता की अपेक्षा कर रही हैं।

Reported by- Ramesh Khanna, Haridwar

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