परमार्थ निकेतन में आयोजित 34 दिवसीय श्रीराम कथा की पूर्णाहुति आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चेतना का अद्वितीय संगम रही। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के सान्निध्य में यह आयोजन केवल धर्म का संदेश नहीं, बल्कि पर्यावरण जागरूकता, सेवा, संस्कार और सतत विकास का प्रेरणास्त्रोत बना।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (17 जून) के अवसर पर श्रद्धालुओं ने “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” मंत्र के साथ भूमि संरक्षण का संकल्प लिया। कथा के अंतिम दिन हजारों लोगों ने वृक्षारोपण और पर्यावरण सेवा को जीवन का हिस्सा बनाने का प्रण लिया।
कथा व्यास संत मुरलीधर जी ने इसे जीवन की सबसे पवित्र साधना बताते हुए परमार्थ निकेतन की आध्यात्मिक ऊर्जा को आत्मा के जागरण का तीर्थ बताया। कथा के माध्यम से श्रीराम के आदर्शों—मर्यादा, सेवा, करुणा और प्रकृति प्रेम—को जनमानस में स्थापित किया गया।
यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना और जीवन मूल्यों का जन-जागरण अभियान बन गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने प्रकृति, संस्कृति और समाज सेवा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझा और निभाने का संकल्प लिया।
Reported By: Arun Sharma