अखिल भारतीय वैष्णव परिषद के महामंत्री बाबा बलराम दास हठयोगी ने कुंभ के दौरान सत्य बोलकर संत समाज में सनसनी अवश्य फैला दी है। बाबा हठयोगी ने अखाड़ों की सम्पत्तियों के व्यवसायिक इस्तेमाल और स्टांप चोरी कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाए जाने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। यदि यह आरोप वास्तव में सत्य हैं तो सरकार को इस पर ठोस कार्यवाही करनी चाहिए।
बाबा हठयागी ने प्रेसवार्ता कर स्वंय अपने ही समाज के लोगों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हालांकि बाबा हठयोगी ने दोनों अखाड़ा परिषदों के अध्यक्षों को नोटिस भेजा है, किन्तु उनके निशाने पर देखा जाए तो कई और संत हैं। बाबा हठयोगी ने एक नोटिस रूपी तीर से एक साथ कई शिकार करने का कार्य किया है।
बाबा हठयोगी के इस आरोप को नकारा नहीं जा सकता की अखाड़े की सम्पत्तियों पर कुछ लोग ऐश कर रहे हैं। अखाड़ों की जमीनों को बेचा जा रहा है। उस पर इमारतों को निर्माण कर उन्हें बेचा जा रहा है। इतना ही नहीं एक फ्लैट, जिसकी लाखों में कीमत है, उसे मात्र 100 रुपये के स्टाप पर दूसरे व्यक्ति के सुपुर्द किया जा रहा है। ऐसा कर धर्म की दुहाई देने वाले भगवाधारी स्टांप चोरी करने का कार्य कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचान का कार्य कर रहे हैं। वहीं अखाड़ों की जमीनें बेचकर कुंभ पर्व पर साधुओं के लिए सरकार से जमीन मुहैय्या कराने का दवाब बनाया जाता है।
वहीं बाबा ने संतों के आचरण में ह्ास की बात भी कही है। सूत्रों की मानें तो स्थिति आज यह है कि अखाड़ों के चुनाव में भी धनबल का इस्तेमाल जमकर किया जाने लगा है। अखाड़े में मण्डलेश्वर बनाने के नाम पर लाखों रुपये बिना किसी लिखत-पढ़त के लिए जाने लगे हैं। आज धनबल के आधार पर अयोग्य भी मण्डलेश्वर बनने लगे हैं। गैर ब्राह्मणों को आचार्य बनाया जाने लगा है। जबकि आचार्य बनने के लिए अब करोड़ों का खर्च आने लगा है। जिसका कोई हिसाब नहीं होता। कुछ कथित भगवाधारी अपने मेकअप के लिए ब्यूटी पार्लर तक का इस्तेमाल करते हैं, जबकि संन्यासी के लिए सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग करना शास्त्रोक्त निषेध बताया गया है।
संन्यासी के कक्ष में काठ की स्त्री का होना भी निषेध हैं, किन्तु आज के कुछ भगवाधारी संतानें उत्पन्न कर रहे हैं। कुछ भगवाधारी अपराधों में संलिप्त होकर भी पूजे जा रहे हैं। दलाली, व्यवसाय को तो कुछ ने अपना प्रथम धर्म बना लिया है।
बाबा हठयोगी ने कुंभ पर्व पर सरकार से पैसा लेने के लिए सरकार पर दवाब बनाने की बात भी कही। गत हरिद्वार कुंभ में प्रदेश सरकार ने सभी अखाड़ों को एक-एक करोड़ रुपये दिये थे, जिसमें से एकमात्र श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने सरकारी धन लेने से साफ इंकार कर दिया था। जिन अखाड़ों से सरकार से एक करोड़ रुपये लिए उन्होंने उसका आज तक हिसाब किताब न तो सरकार और न ही आयकर विभाग को दिया।
आखिर बड़ा सवाल यह कि जब अखाड़ों की सम्पत्तियों का व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है और उससे धन प्राप्त हो रहा है तो फिर सरकार से रुपया मांगने की जरूरत क्यों पड़ती है। जो अखाड़ों की सम्पत्ति को ठीकाने लगाकर धन आता है वह जाता कहां है। इसका भी सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।
देखें तो आजकल साधुशाही समाप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। आज दिखावा और ऐशोआराम की जिंदगी को ही साधुशाही माना जाने लगा है। यही कारण है कि लाखों रुपयों के आसनों पर बैठना और करोड़ों की गाडि़यों में घूमना और संन्यासी के लिए धारण करने को जिसे निषेध बताया गया है वह सोना पहनकर दिखावा करना आम बात हो गई है। आम साधु के लिए आज न तो अखाड़ों और न ही आश्रमों में कोई स्थान बचा है। वास्तविक साधु को साधु ही नहीं माना जाता। चकाचौंध और धन देखकर साधु की पहचान होने लगी है। जिसके पास जितना अधिक धन वहीं उतना बड़ा साधु। जबकि तप, ज्ञान और वैराग्य का उसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता।
Reported by- Ramesh Khanna, Haridwar